UESDAY, JUNE 29, 2010
Our toughts control our destiny
In a powerful article, Acharya Shivendra Nagar says that we can control our destiny by our thoughts. I highly recommend that you read the great article reproduced below. In summary, if we want to change our fortune, we must work on our thinking because:
अक्सर लोग कहते हैं कि हम अमीर बनना चाहते हैं, पर सचाई यह है कि कोई भीअमीर बनना नहीं चाहता। अगर हम अपनी मानसिकता में अमीर नहीं बनते, तोबाहर से अमीर नहीं बन सकते। बाहर से अमीर बनने के लिए सबसे पहले मानसिकस्तर पर अमीर बनना होगा।
वेदांत का नियम है, जैसा सोचते हैं, वैसा बनते हैं। यदि हम मन से यह सोच लेते हैंकि हम गरीब हैं, बेकार हैं, कुछ नहीं कर सकते तो हम सदा गरीब और बेकार ही बनेरहेंगे। यदि सोचते हैं कि हम अमृत पुत्र हैं, उस परमसत्ता की संतान हैं तो फिर हमदर-दर की ठोकरें क्यों खाएंगे?
इसे एक उदाहरण से समझिए। हम अपने बच्चे के ऑफिस में उसको बिना बताएजाते हैं और वह अपने बॉस के सामने छुट्टी अथवा प्रमोशन के लिए गिड़गिड़ा रहाहै, तो देखकर हमें कैसा लगेगा? बहुत बुरा। इसी तरह, हम उस परमपिता की संतानहै; पर स्वयं को दीन-हीन बनाया हुआ है, तो परमात्मा को कैसा लगेगा?
संतान अपने माता-पिता के अनुरूप ही होती है। यदि पिता 'गुप्ता' है तो उसकी संतानभी 'गुप्ता' ही कहलाएगी। हम प्रभु की संतान हैं तो हम क्या हुए? प्रभु पूर्ण हैं तो प्रभुका अंश भी पूर्ण ही होगा। तो हम अपने आप को बेचारा, लाचार, दास क्यों समझें?
यदि हम कुछ प्राप्त करना चाहते हैं तो सबसे पहले मानसिक स्तर पर हमें यहनिश्चय करना चाहिए कि हां, मैं यह प्राप्त कर सकता हूं। पहले मन में सकारात्मकविचार का आना जरूरी है, क्योंकि विचार से ही इच्छा का सृजन होता है और इच्छाही कार्यरूप में परिणत होती है।
यदि दिमाग में पहले ही नकारात्मक विचार आ गया कि नहीं हो पाएगा तो वह नहींहोगा। मान लीजिए, लकड़ी का एक फट्टा जमीन पर रखा जाए, उस फट्टे पर चलनेके लिए कहा जाए, तो सब लोग आसानी से चल पाएंगे। उतना ही चौड़ा फट्टा दो बड़ीइमारतों के ऊपर रखा जाए और उस पर चलने के लिए कहा जाए तो क्या होगा? एकबार मन में आ गया कि हम इस पर नहीं चल पाएंगे, नीचे गिर जाएंगे, तो फिरफट्टे पर नहीं ही चल पाएंगे।
हमें आध्यात्मिक अथवा भौतिक स्तर पर कुछ भी प्राप्त करना है तो सर्वप्रथमदिमाग में विचार डालने की जरूरत है। इसके बदले यदि सोचें कि हम तो बीमार हैं,हमारे कंधों में, घुटनों में, पीठ में -सारे शरीर में दर्द रहता है, तो फिर बीमार हीरहेंगे। वास्तविकता यह है कि शरीर विचार नहीं बनाते, अपितु विचारों से शरीरबनता है। यदि कोई व्यक्ति वैचारिक स्तर पर राजसिक है, बहुत ऊर्जावान है तोशारीरिक स्तर पर भी वह स्फूतिर्वान रहेगा, आलसी नहीं।
आजकल बाजार में अंग्रेजी की एक पुस्तक बहुत प्रसिद्ध हो रही है जिसका नाम है -दसीक्रेट। इसमें यही बताने की कोशिश की गई है कि आपके विचार ही आपके भविष्यका आधार हैं। यही बात गीता के 7 वें अध्याय के 21वें श्लोक में कही गई है। कृष्णकहते हैं, जो जो भक्त जिस विचार को श्रद्धा से प्राप्त करना चाहता है, उस उस श्रद्धावाले व्यक्ति के विचारों को मैं पूर्ण करता हूँ।
इसलिए भाग्य को बदलने के लिए अपने विचारों को सुधारना होगा,क्योंकि-
हमारे विचार ही शब्दों में परिवर्तित होते हैं।
हमारे शब्द ही कर्मों में परिणत होते हैं।
हमारे कर्म ही हमारी आदत बनते हैं।
हमारी आदतों से ही हमारा चरित्र बनता है।
हमारा चरित्र ही हमारा भाग्य निर्माता
- Our thoughts control our words
- Our words decide our deeds
- Over time, our actions are formed into habits
- Sum total of our habits makes our character
- And finally, it is our character that determines our destiny
अक्सर लोग कहते हैं कि हम अमीर बनना चाहते हैं, पर सचाई यह है कि कोई भीअमीर बनना नहीं चाहता। अगर हम अपनी मानसिकता में अमीर नहीं बनते, तोबाहर से अमीर नहीं बन सकते। बाहर से अमीर बनने के लिए सबसे पहले मानसिकस्तर पर अमीर बनना होगा।
वेदांत का नियम है, जैसा सोचते हैं, वैसा बनते हैं। यदि हम मन से यह सोच लेते हैंकि हम गरीब हैं, बेकार हैं, कुछ नहीं कर सकते तो हम सदा गरीब और बेकार ही बनेरहेंगे। यदि सोचते हैं कि हम अमृत पुत्र हैं, उस परमसत्ता की संतान हैं तो फिर हमदर-दर की ठोकरें क्यों खाएंगे?
इसे एक उदाहरण से समझिए। हम अपने बच्चे के ऑफिस में उसको बिना बताएजाते हैं और वह अपने बॉस के सामने छुट्टी अथवा प्रमोशन के लिए गिड़गिड़ा रहाहै, तो देखकर हमें कैसा लगेगा? बहुत बुरा। इसी तरह, हम उस परमपिता की संतानहै; पर स्वयं को दीन-हीन बनाया हुआ है, तो परमात्मा को कैसा लगेगा?
संतान अपने माता-पिता के अनुरूप ही होती है। यदि पिता 'गुप्ता' है तो उसकी संतानभी 'गुप्ता' ही कहलाएगी। हम प्रभु की संतान हैं तो हम क्या हुए? प्रभु पूर्ण हैं तो प्रभुका अंश भी पूर्ण ही होगा। तो हम अपने आप को बेचारा, लाचार, दास क्यों समझें?
यदि हम कुछ प्राप्त करना चाहते हैं तो सबसे पहले मानसिक स्तर पर हमें यहनिश्चय करना चाहिए कि हां, मैं यह प्राप्त कर सकता हूं। पहले मन में सकारात्मकविचार का आना जरूरी है, क्योंकि विचार से ही इच्छा का सृजन होता है और इच्छाही कार्यरूप में परिणत होती है।
यदि दिमाग में पहले ही नकारात्मक विचार आ गया कि नहीं हो पाएगा तो वह नहींहोगा। मान लीजिए, लकड़ी का एक फट्टा जमीन पर रखा जाए, उस फट्टे पर चलनेके लिए कहा जाए, तो सब लोग आसानी से चल पाएंगे। उतना ही चौड़ा फट्टा दो बड़ीइमारतों के ऊपर रखा जाए और उस पर चलने के लिए कहा जाए तो क्या होगा? एकबार मन में आ गया कि हम इस पर नहीं चल पाएंगे, नीचे गिर जाएंगे, तो फिरफट्टे पर नहीं ही चल पाएंगे।
हमें आध्यात्मिक अथवा भौतिक स्तर पर कुछ भी प्राप्त करना है तो सर्वप्रथमदिमाग में विचार डालने की जरूरत है। इसके बदले यदि सोचें कि हम तो बीमार हैं,हमारे कंधों में, घुटनों में, पीठ में -सारे शरीर में दर्द रहता है, तो फिर बीमार हीरहेंगे। वास्तविकता यह है कि शरीर विचार नहीं बनाते, अपितु विचारों से शरीरबनता है। यदि कोई व्यक्ति वैचारिक स्तर पर राजसिक है, बहुत ऊर्जावान है तोशारीरिक स्तर पर भी वह स्फूतिर्वान रहेगा, आलसी नहीं।
आजकल बाजार में अंग्रेजी की एक पुस्तक बहुत प्रसिद्ध हो रही है जिसका नाम है -दसीक्रेट। इसमें यही बताने की कोशिश की गई है कि आपके विचार ही आपके भविष्यका आधार हैं। यही बात गीता के 7 वें अध्याय के 21वें श्लोक में कही गई है। कृष्णकहते हैं, जो जो भक्त जिस विचार को श्रद्धा से प्राप्त करना चाहता है, उस उस श्रद्धावाले व्यक्ति के विचारों को मैं पूर्ण करता हूँ।
इसलिए भाग्य को बदलने के लिए अपने विचारों को सुधारना होगा,क्योंकि-
हमारे विचार ही शब्दों में परिवर्तित होते हैं।
हमारे शब्द ही कर्मों में परिणत होते हैं।
हमारे कर्म ही हमारी आदत बनते हैं।
हमारी आदतों से ही हमारा चरित्र बनता है।
हमारा चरित्र ही हमारा भाग्य निर्माता
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